सनातन धर्म

सनातन धर्म क्या है ?

सनातन धर्म सबसे पुराना धार्मिक दर्शनशास्त्र है और यह मूल्यों, कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का वर्णन करता है जो ब्रह्मांड के निर्माता ने प्रतिष्ठापित की हैं। इनका पालन सभी को, जीवित या निर्जीव, मनुष्य को भी, करना है। सनातन धर्म के शास्त्र 'वेद' विश्व के सबसे पुराने लिखित ग्रंथ हैं जो कम से कम 7500 ईसा पूर्व वर्ष के हैं।

धर्म शब्द का उल्लेख ऋग्वेद में है जो सृजित प्राणियों खासतौर पर ब्रह्मांडीय (जैसे सूर्य) के लिए उपयोग किया गया था कि उनको निर्धारित पद्धति के अनुसार ही चलना है। यह धारणा थी कि अगर वह उस निर्धारित पद्धति के अनुसार नहीं चलेंगे तो वो कई प्रकार की आपदाओं और कष्टों के लिए जिम्मेदार होंगे।

धर्म शब्द का उपयोग मानवों के लिए उनके प्राकृतिक, धार्मिक, सामाजिक व नैतिक क्षेत्र में किया गया कि उनको मूल्यों, कर्तव्यों व जिम्मेदारियों, अधिकारों, कानूनों, चरित्र, गुणों , सही तरीके से रहना, नीतिपरायणता की पद्धति का अनुसरण करना है।  धर्म सार्वभौमिक है और यह सभी मानवों पर लागू होता है।

ऐतिहासिक तथ्य

1,000 ईसा पूर्व वर्ष से पंथों और सम्प्रदायों, यहूदी, जैन, बौद्ध, ईसाई, इस्लाम, सिख, स्वामीनारायण, आर्य समाज, साई बाबा इत्यादि, के उभरने की शुरुआत हुई जिसने सनातन धर्म को पीछे धकेल दिया और नए पंथों का विस्तार करने के लिए बल, जोर जबरदस्ती, प्रलोभन आदि सभी किस्म के तरिके अपनाये गए।

​सनातन शास्त्र महा उपनिषद दर्शाता है "वसुधैव कुटुम्बकम" अर्थात विश्व एक परिवार है।इस विचारधारा ने सनातन धर्म के अनुयायियों को धर्म परिवर्तन, आक्रमण, युद्ध, हिंसा, लालच, जबरदस्ती जैसे तरीकों से सनातन धर्म का विस्तार करने से प्रतिबंधित किया। इसके विरुद्ध अन्य पंथों व सम्प्रदायों का सनातन धर्म पर हमला 3,000 वर्षों से चल रहा है। इसी कारण से सनातन धर्म के ज्यादातर अनुयायी भारत की सीमाओं तक ही सिमट कर रह गए।

यह सब कुछ होने के बावजूद भी भारत ने कभी भी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया और ना ही अन्य पंथों के अनुयायियों को किसी भी तरीके से धर्म परिवर्तन करने की कोशिश की।

सनातन धर्म के अनुयायी मायने हिन्दू शांतिपूर्वक रहने में विश्वास रखते हैं और उन्होंने विश्व को दिखा दिया की वह अन्य पंथों व सम्प्रदायों के अनुयायियों के साथ मिलजुल कर शांतिपूर्वक रहने को तैयार हैं। हिन्दू विश्व के सबसे ज्यादा सहनशील लोग हैं और इसीलिए आजकल भारतीयों का सम्मान विश्व में सब जगह होता है।

हाल ही में हिन्दुओं ने आक्रामक रूख लिया है और यह भद्दा रूप भी ले सकता है यदि अन्य पंथों व सम्प्रदायों के अनुयायी सनातन धर्म के अनुयायियों को मान्यता देना और मान सम्मान करना सीख ना लें।

धर्म और रिलिजन में अंतर

क्रमांक रिलिजन धर्म
1 रिलिजन एक समुदाय की आस्था पद्धति है धर्म सर्वत्र है और पूरी मानवता के लिए है
2 रिलिजन आस्था और पूजा की खास प्रणाली है और उसमें विश्वास करने वालों को उसी रास्ते पर चलना है। धर्म सब के लिए है। धर्म ​सर्वत्र ​शाश्वत मूल्य, कर्तव्य और जिम्मेदारि​यों का ​रास्ता है और सभी ​​(जीवित या निर्जीव)​ ​को ​उन​ पर चलना है​।
3 रिलिजन आस्था के विचार को बताता है और विचार बदल भी सकता है। धर्म शाश्वत हैं ​और बदलते नहीं हैं।
4 रिलिजन अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं अनुसार बदला जा सकता है। धर्म बदले नहीं जा सकते।
5 रिलिजन का संस्थापक होता है। धर्म शाश्वत है और कोई संस्थापक नहीं।
6 रिलिजन के आरंभ होने की तिथि होती है। धर्म शाश्वत है और आरंभ होने की कोई तिथि नहीं।
7 रिलिजन लोगों पर निर्भर करता है। धर्म लोगों पर निर्भर नहीं करता बल्कि लोग धर्म पर निर्भर करते हैं।
8 रिलिजन का प्रचार प्रसार किया जाता है। धर्म के साथ या तो हम पैदा होते हैं या उन्हें सीखते हैं। अलौकिक शक्ति ने धर्म को सभी (जीवित या निर्जीव) के अंदर निर्वाहित किया हुआ है।
9 रिलिजन का संस्कृत भाषा में अनुवाद "पंथ" है। धर्म का पश्चिमी भाषाओं में कोई समान अनुवाद नहीं है।

रिलिजन और धर्म में और बहुत से अंतर हो सकते हैं लेकिन यहां पर सिर्फ रिलिजन और धर्म में अंतर दर्शाने का उद्देश्य है।

icon

पुस्तक की विषय सूची के बारे में झलक

सनातन धर्म प्रतिष्ठान® " हिन्दू सनातन धर्म - मूल जानकारी " नाम की पुस्तक को प्रकाशित करने पर काम कर रहा है। यह पुस्तक सनातन धर्म और वैदिक विद्द्वानों के कथन पर आधारित होगी और इस पुस्तक का समायोजन प्रतिष्ठान के अध्यक्ष श्री सुदेश अग्रवाल कर रहे हैं।

पुस्तक अभी पूरी नहीं हुई है, उसकी विषय सूची की झलक निम्न है:

विषय सूची

अध्याय - 1

पृष्ठभूमि को जानना

icon

मूल आधार

icon

परिचय

icon

आर्यों और द्रविड़ीयों के बारे में

icon

शब्द रिलिजन और धर्म के लक्षण

icon

रिलिजन और धर्म की तुलना

icon

वेदों और शास्त्रों की व्याख्या

icon

वेदों और शास्त्रों की सूची

अध्याय - 2

सनातन धर्म दर्शनशास्त्र

icon

पृष्ठभूमि

icon

ब्रह्मांड कैसे बना

icon

अलौकिक शक्ति, आत्मा और अणु परिभाषित

icon

मानव के अस्तित्व का उद्देश्य

icon

जन्म और पुनर्जन्म की अवधारणा

और अध्याय शामिल किए जाएंगे

सनातन धर्म शास्त्र

सनातन धर्म शास्त्र हिन्दू धर्म का आधार हैं।

शास्त्रों जी सूची

यह सूची पढ़ने वालों को सनातन शास्त्रों की जानकारी देगी और यह भी बताएगी की ये एक दूसरे के साथ कैसे जुड़े हुए हैं।

प्रार्थमिक शास्त्र

सनातन धर्म के प्रार्थमिक शास्त्र 4 वेद हैं और इन्हें श्रुति शास्त्र भी कहा जाता है। श्रुति शास्त्र वो शास्त्र हैं जिनको ऋषियों ने सुना और मौखिक रूप से आगे पारित किया। ये शास्त्र आधिकारिक हैं, इनमें बदलाव नहीं किया जा सकता, इनका कोई लेखक नहीं और ये ब्रह्माण्ड के निर्माण से ही हैं। ऋषि वेद व्यास ने इन


अन्य शास्त्र

सनातन धर्म के 7 प्रकार के अन्य शास्त्र हैं जो अप्रधानिक हैं और इन्हें स्मृति शास्त्र भी कहा जाता है। स्मृति शास्त्र कम आधिकारिक और ज्यादा निर्देशीय हैं, इनका लेखक होता है और इनमें बदलाव भी किया जा सकता है।


प्रार्थमिक / श्रुति शास्त्र (वेद)

क्रमांक वेद का नाम संक्षिप्त वर्णन
1 ऋग्वेद

प्रत्येक वेद के निम्न 4 भाग होते

सहिताएं

ब्राहमण

आर्यंक

उपनिषद

2 यजुर्वेद
3 सामवेद
4 अथर्ववेद

संहिताएं

इस भाग में सबसे प्राचीन भजन, मंत्र और प्रार्थनाएं हैं।

ब्राहमण

यहाँ ब्राहमण का अभिप्राय ब्राह्मण जाती के लोगों से नहीं है। यह सिर्फ भाग का शीर्षक है। इस भाग में वेदों में बताए गए संस्कारों / रिवाजों की सामाजिक और धार्मिक महत्वता पर टिप्पणी की गई है।

आर्यंक

इस भाग में जो वेदों के अनुसार वानप्रस्थ अवस्था में जाते हैं और जंगलों में रहते हैं , उनको दिशा दी गयी है। आर्यंकों को ब्राहमणों का अंतिम भाग भी कहा गया है।

उपनिषद

उपनिषद ब्रह्माण्ड के संदर्भ से मानवता के बारे में बताते हैं। उपनिषद का अर्थ है ज्ञान तो अज्ञानता का नाश करता है और यह ज्ञान गुरु के साथ बैठकर सीखा जाता है। उपनिषद को वेदांत भी कहा गया है जिसका अर्थ है वेदों का अंतिम भाग।

कुल मिलकर 108 उपनिषद हैं। ऋग्वेद - 10, यजुर्वेद - 51, सामवेद - 16 और अथर्ववेद - 31

इन 108 उपनिषदों को 7 श्रेणियों में बांटा गया है।

  1. शिव - 13
  2. शक्ति - 9
  3. वैष्णव - 14
  4. योग - 19
  5. सन्यास - 16
  6. सामान्य - 27
  7. मुख्य - 10

मुख्य उपनिषदों पर श्री अदि शंकराचार्य, श्रो माधवाचार्य  और श्री रामानुजाचार्य ने टिप्पणी की है।

उपर्लिखित जानकारी वेदों में क्या है समझने के लिए संक्षिप्त में दी गयी है।

अन्य शास्त्र (स्मृति शास्त्र)

क्रमांक श्रेणी प्रत्येक श्रेणी में शास्त्रों की संख्या
1 वेदांग 6
4 उपवेद 4
3 दर्शन 6
4 पुराण 18
5 उपपुराण 18
6 इतिहास (महाकाव्य) 2
7 धर्म शास्त्र 18

1. वेदांग

वेदांग वो पाठ हैं जिनका ज्ञान वेदों को समझने के लिए जरूरी है। वेदांग में 6 शास्त्र हैं।

क्रमांक वेदांग शास्त्र संक्षिप वर्णन
1 शिक्षा स्वर - विज्ञानं
2 कल्पा सही धार्मिक कर्म
3 व्याकरण ग्रामर
4 निरुक्ता शब्दकोश
5 छन्दस मापक यंत्र
6 ज्योतिष ज्योतिष

2. उपवेद

उपवेद मुख्य वेदों के साथ जुड़े हुए शास्त्र हैं।  निम्न 4 उपवेद हैं।

क्रमांक उपवेद का नाम संक्षिप्त वर्णन
1 आयुर्वेद स्वास्थ्य विज्ञानं - ऋग्वेद
2 धनुर्वेद युद्ध विज्ञानं - यजुर्वेद
3 गन्धर्ववेद कला व संगीत विज्ञानं - सामवेद
4 अर्थवेद अर्थ शास्त्र और राजनीती विज्ञानं - अथर्ववेद

3. दर्शन

वैदिक संस्कृति के अनुसार दर्शन का अर्थ है रूढ़िवादी विचार।आम तौर पर दर्शन का अर्थ है देवता, मंदिर के केंद्रीय गृह, साधु संतों को देखना।

निम्न 6 श्रेणी के दर्शन शास्त्र हैं।

क्रमांक श्रेणी संक्षिप्त विवरण
1 न्याय दर्शन तर्क पर पाठ
2 वैसशिखा  दर्शन परमाणु सिद्धांत पर पाठ
3 संख्या दर्शन गुणों पर पाठ
4 योग दर्शन दिमाग और शरीर पर पाठ
5 पूर्व मीमान्सा कर्म और भौतिकवाद पर पाठ
6 उत्तर मीमान्सा ब्रह्म सूत्र और वेदांत सूत्र

4. पुराण

पुराण देवताओं, राजाओं, साधु संतों, आम आदमी की प्रशंसा में लिखे गए नैतिक और सदाचारपूर्ण प्राचीन पाठ हैं। पुराणों को वेदों की अनुपूरक व्याख्या का माध्यम भी माना गया है।

मुख्य पुराणों को महा पुराण भी कहा गया है और 18 महापुराण हैं जो 3 श्रेणी में देवताओं के नाम के अनुसार बटे हैं।

18 महापुराण निम्न हैं:

क्रमांक देवता का नाम पुराण का नाम
1 ब्रह्मा ब्रह्मा पुराण
2 मारकंडिया पुराण
3 भविष्य पुराण
4 ब्रह्मअंदा पुराण
5 ब्रह्म वैवरता पुराण
6 विष्णु विष्णु पुराण
7 गरुड़ पुराण
8 महाभागवत पुराण
9 मत्स्या पुराण
10 कुर्मा पुराण
11 बराहा पुराण
12 पदमा पुराण
13 वमाना पुराण
14 नाराधिया पुराण
15 शिव शिव पुराण
16 लिंगा पुराण
17 स्कंडा पुराण
18 अग्नि पुराण

5. उपपुराण

उपपुराण देवताओं, राजाओं, साधु संतों, आम आदमी की प्रशंसा में लिखे गए नैतिक और सदाचारपूर्ण अनुषंगी प्राचीन पाठ हैं।

उपपुराण भी 18 हैं और निम्न ग्रुप में बटे हैं:

क्रमांक ग्रुप का नाम उपपुराणों की संख्या
1 वैष्णव उपपुराण 4
2 शक्ति उपपुराण 5
3 शिव उपपुराण 5
4 गणपतिया उपपुराण 2
5 निष्पक्ष उपपुराण 3

6. इतिहास (महाकाव्य)

यद्यपि संस्कृत में इतिहास का अर्थ है प्राचीन कथा लेकिन धार्मिक संदर्भ में इतिहास दिव्य अवतारों की नैतिक व दार्शनिक कहानियों को बताते हैं। इनमें रामायण और महाभारत के महाकाव्य शामिल हैं।

Ramayana: रामायण 200 ईसा पूर्व वर्ष ऋषि वाल्मीकि ने रचित किया। रामायण देवता विष्णु के अवतार भगवान राम की महाकाव्य कहानी है।

Mahabharata: महाभारत ऋषि व्यास  की।  यह महाकाव्य कहानी धर्म पर खासतौर पर राजाओं के धर्म पर आधारित है। महाभारत श्रीमद भागवत गीता के लिए जानी जाती है जिसमें विष्णु देवता के अवतार भगवान कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया जो पूरी मानवता के लिए है।

7. धर्म शास्त्र

धर्म शास्त्र वो पाठ, दस्तावेज, किताबें व नियमावली हैं जिनमें नैतिकता और धार्मिक कर्तव्यों के कानून शामिल हैं। इनमें मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत व नियम हैं जो नेक आचरण  और समाज को नियमितता दर्शाते हैं।

धर्म शास्त्रों में बताए गए धर्म, परम्पराओं, रीती रिवाजों और इनके लेखकों की घोषणाओं पर आधारित हैं। शायद इनको उभरते हुए नैतिक, वैचारिक, सांस्कृतिक, कानूनी प्रथाओं से लिया गया है। धर्म शास्त्रों का वेदों से कोई घना संबंध नहीं है और धर्म शास्त्रों का जिक्र वैदिक ग्रंथों में भी नहीं है।

धर्म शास्त्र किसी एक लेखक ने नहीं लिखे। इनकी समीक्षा या इनके ऊपर टिप्पणी प्राचीन या मध्यकाल में की गई। धर्म शास्त्र एक दुसरे के साथ असंगत हैं और इसीलिए इनकी प्रामणिकता पर प्रश्न उठते है।

मुख्य धर्म शास्त्र निम्न हैं:

  1. मनु स्मृति
  2. यजनावाक्य स्मृति
  3. नारदा स्मृति
  4. विष्णु स्मृति
  5. ब्रिष्पति स्मृति
  6. कात्याना स्मृति

धर्म शास्त्र प्राचीन धर्म सूत्रों पर आधारित हैं।

धर्म सूत्र व्यक्तिगत और सामाजिक व्यवहार के लिए मार्गदर्शन करते हैं। धर्म सूत्रों में धर्म विभिन्न प्रकार के हैं और उनमें निम्न शामिल हैं:

  • व्यवहार के स्वीकृत मापदंड
  • रीती रिवाजों की प्रक्रिया
  • नैतिक क्रिया
  • नीतिपरायणता और नैतिक व्यवहार
  • नागरिक व आपराधिक कानून
  • कानूनी प्रतिक्रियाएं
  • तपस्या और सजा
  • उचित और उत्पादक जीवन के लिए दिशा निर्देश
  • सामाजिक प्रतिक्रियाएं - विवाह, विरासत, गोद लेना, कार्य अनुबंध, न्यायिक प्रतिक्रिया, भोजन व भोजन का सेवन, यौन आचरण इत्यादि।

ये धर्म वैदिक दस्तावेजों में नहीं हैं। धर्म सूत्र बहुत हैं लेकिन कुछ ही बच पाए हैं।